कुहसायी रात

कुहसायी रात 

फिर घिर आई वही सर्द कुहसायी रात,
छुपाए अपने गहरे स्याह दामन में,
माक़ूल और नामाकूल से कुछ नए सवालात
कौन देगा हिसाब, किसके पास है जवाबात?

क्या है कोई एक भी यहाँ दूध का धुला,
क्या किसी का है दामन साफ़-शफ्फाक़?
हमें तो अब हर चेहरा चाँद नज़र आता है,
हालाँकि  वो सिर्फ़ चाँद ही है जिसमें दाग़ नज़र तो आता है!

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